बहुत समय पहले की बात है ।
भद्रपुर नामक नगर में हर्षवर्धन नाम का एक व्यक्ति रहता था । वह उस नगर का सबसे धनी व्यक्ति था । उसके बुद्धि और कौशल को देखते हुए राजा सोमदेव ने उसे अपने राज्य का खजांची बना दिया । कुछ ही वर्षो में उसने अपनी क्षमता से राज्यकोष को भर दिया ।
एक दिन वह दोपहर में अपने घर में आराम कर रहा थे, तभी एक युवक उनके घर पर आया ।
युवक ने कहा – ” मेरा नाम नरेंद्र है । आप मुझे नहीं जानते है पर आप मेरे गुरु है । मेरी गुरुदक्षिणा स्वीकार कीजिये ।”
नरेंद्र ने एक सोने का चूहा निकला और हर्षवर्धन के सामने रख दिया ।
हर्षवर्धन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चल क्या रहा है?
उन्होंने कहा – ” क्षमा करना, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । कृपया विस्तार से समझाओ ।”
नरेंद्र ने फिर बताना शुरू किया ।
चार महीने पहले मैं अपने गाँव से इस नगरी में अपनी जीविका कि तलाश में आया था । चार दिन भटकने के बाद मुझे आप अपने मित्र के साथ जाते हुए दिखे । आपके व्यक्तित्व ने मुझे आकर्षित किया और मैं आपके पीछे चलने लगा । मैंने आप दोनों कि बातें सुनी ।
आपके मित्र ने आपके यश और वैभव का राज पूछा । आपने उत्तर दिया कि यह सब आपकी बुद्धि, कुशलता और ईमानदारी का परिणाम है । तभी आपको सामने कि राह पर एक मरा हुआ चूहा दिखाई पड़ा । आपने कहा अगर कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग करे तो इस मरे हुए चूहे से भी व्यापार कर धनी बन सकता है ।
आपकी बातों को सुनकर आपका मित्र ज़ोर -ज़ोर से हंसने लगा और कहने लगा मरे हुए चूहे से व्यापार! पर आपकी यह बात मुझपर बिजली कि तरह गिर पड़ी । मैं वहीं खड़ा का खड़ा रह गया ।
मरे हुए चूहे से व्यापार!
मैंने उस चूहे को उठाया और चलते हुए सोच रहा था कि इस चूहे का क्या किया जाए?
तभी मैंने देखा सामने से एक बिल्ली मेरी तरफ दौड़ती हुए आयी और उसके पीछे उसका मालिक । मालिक समझ गया था कि बिल्ली को चूहा चाहिए था, उसने मुझसे पूछा ” चूहा बेचोगे?”। मैंने हाँ कर दी । उसने मुझे एक पैसा दिया और चूहे कि बिल्ली को दे दी ।
उस दिन मेरी पहली कमाई हुए थी । एक पैसे से मैंने गुड़ ख़रीदा और पानी लेकर सड़क के किनारे बैठ गया ।कुछ फूलवाले फूल लेकर उस रास्ते पर आ रहे थे । उनमें सबसे आगे एक वृद्ध व्यक्ति चल रहा था । मैंने पूछा ” बाबा! गुड़ -पानी पियोगे? ” वह खुश होकर गुड़-पानी पीने लगा। उसके साथ बाकि फूलवालों ने भी गुड़-पानी पिया । उन्होंने मुझे ढेर सारा आशीर्वाद और साथ ही साथ अपनी टोकरी से कुछ फूल मुझे दिए ।
मैं उन फूलों को लेकर मंदिर के सामने बैठ गया । लोगों ने मुझसे फूल ख़रीदा और उस दिन मेरी कमाई थी, आठ पैसे । मैं बहुत ही खुश था ।
कुछ दिनों तक ऐसे ही चला । एक दिन मैंने कुछ किसानों को भी रास्ते से जाते हुए देखा । उन्होंने भी गुड़-पानी पिया, मुझे ढेर सारा आशीर्वाद दिया और कहा कि कभी हमारी जरूरत पड़े तो कहना । इन दिनों मैंने पैसे तो काम पर बहुत सारा आशीर्वाद और प्यार जरूर कमाया ।
एक महीने बाद बहुत ज़ोरो का तूफ़ान आया । रास्ते पर पत्थर और लकड़ियां गिरी पड़ी थी । मैंने सोचा जब मरे हुए चूहे से पैसा कमाया जा सकता है तो लकड़ियों से क्यों नहीं? तभी मुझे सामने राज-उद्यान के माली कि दुःखी सूरत दिखाई पड़ी । मैंने पूछा ” क्या हुआ काका?” उसने बताया राजा कभी भी आ सकता है और तूफ़ान के कारन पूरा उद्यान उजड़ गया है । मैंने कहा ” मैं इसे साफ करने में आपकी मदद करूँगा और बदले में सारी लकड़ियाँ अपने साथ लेकर जाऊँगा ।” वह ख़ुशी- ख़ुशी मान गया ।
लकड़ियों के गठ्ठे को अपने सर पर लिए मैं यह सोचते जा रहा था कि इनका क्या करूँ? तभी एक गाड़ीवान मेरे सामने रुका और उसने मुझसे कहा ” क्यों भाई! लकड़ी बेचोगे?” मैंने तुरंत हाँ कर दी । मैंने कहा ” मेरे पास और भी लकड़ियाँ है ।” उस कुम्हार ने मुझसे सारी लकड़ियाँ खरीद ली और बदले में मुझे सौ तांबे के सिक्के दिए। मैं उसी कि गाड़ी में बैठकर बाजार चला गया ।
बाजार पहुँचकर मुझे पता चला कि दूर देश से एक बहुत बड़ा घोड़े का व्यापारी अपने घोड़ों को बेचने के लिए हमारे नगर आ रहा है । मैंने सोचा घोड़े आएँगे तो उनके खाने के लिए घास कि ज़रुरत ज़रूर पड़ेगी । मैं अपने किसान भाइयों के पास गया और उनसे मदद माँगी । सबने मुझे घास का एक – एक बंडल दिया और मेरे पास कुल पांच सौ बंडल हो गए ।
अगले दिन जब मैं बाजार गया तो मैंने देखा घोड़ों का व्यापारी कुछ चिंतित अवस्था में दिखाई दे रहा था । मैंने उसके पास जाकर पूँछा । उसने बताया कि मेरे घोड़ों के खाने का प्रबंध नहीं हो पा रहा है । मैंने कहा कि मेरे पास घास के पांच सौ बंडल पड़े है तो वह बहुत खुश हो गया और उसने मुझसे पूरा सामान खरीद लिया । मैं अब रोज उससे मिलने लगा और उसकी छोटी – मोटी समस्याओं का हल भी करने लगा । हर तीसरे दिन मैं उसके घोड़ों के लिए घास कि जरूरत भी पूरी करने लगा । मेरी और उस व्यापारी कि मित्रता हो गई । एक महीने बाद जब वो जाने लगा तो मुझे सौ सोने के सिक्के और एक घोडा उपहार स्वरूप दिया ।
मैं बहुत खुश था और मेरी आर्थिक स्थिति पहले की तुलना में काफी अच्छी हो गई थी। कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि कपड़ों और मसालों से भरा जहाज हमारे नगर आने वाला है। मैं अपने कुछ मित्रों के साथ उनसे मिलने के लिए चल पड़ा।
मैंने बाजार से एक मूल्यवान वस्त्र लिया तथा अपनी शारीरिक अवस्था जैसे बाल, चेहरे आदि में सुधार किया। जहाज अभी तट से दूर ही था तो एक नाव कि मदद से मैं उसपर चढ़ गया। वहाँ मैंने जहाज के मालिक के साथ बातचीत की उसी जहाज में पूरा दिन उनके साथ गुजारा। मेरे तथा मेरे मित्रों की व्यवहार और आदरभाव से वह बड़े प्रभावित हुए । मैंने उनसे उनका सारा सामान खरीदने की बात की । उन्होंने कहा ” बीस हज़ार सोने के सिक्के ” ।
मैंने उनसे पंद्रह हज़ार में बात की और कुछ दिनों का समय माँगा । बदले में उन्हें सौ सोने के सिक्के दिए और यह भी कहा कि जब तक मैं आपको पूरे सिक्के नहीं दे देता, सारा सामान आपके ही पास रहेगा । वह तुरंत मान गए ।
अगले दिन जब जहाज तट पर पहुँचा तो सामान खरीदने के लिए स्थानीय व्यापारियों की भीड़ लगी थी । जहाज के मालिक ने उनसे बताया कि सारा सामान पहले ही बिक चुका है । सारे ठगे के ठगे रह गए । फिर सारे मिलकर मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे सारा सामान खरीदना चाहा । मैंने देखा कि सारे व्यापारी सही में मुझसे सारा सामान खरीदना चाह रहे थे । उन्होंने मुझे एक प्रस्ताव दिया और मैं मान गया । मैंने जहाज के व्यापारी को अपने वचन के अनुरूप पंदह हज़ार सिक्के दिए और बाकि अपने साथ लेकर चल पड़ा ।
फिर मुझे आपका ध्यान आया और आपके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए आपके पास आ गया ।
हर्षवर्धन ने उत्सुकता से पूछा ” अच्छा यह तो बताओ व्यापारियों ने तुम्हें कितने सिक्के दिए ।”
” एक लाख सोने की मुद्राएँ ।”
हर्षवर्धन नरेंद्र की बातों को सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने अपनी बेटी के विवाह का प्रस्ताव उसे दिया । नरेंद्र ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया । आगे चलकर वह उस राज्य का खजांची भी बन गया और उसने अपने परिवार तथा अपने राज्य का कुशलता पूर्वक पालन किया । उसने एक खुशहाल जीवन व्यतीत किया ।
निशांत चौबे ” अज्ञानी”
१६.०१.२०२२