जीवन के इन श्वेत पन्नों में
अपने प्रेम का रंग तुम भरो ,
इस बेरुखी , बेरंगी जहां से
इंद्रधनुषी आसमां पर ले चलो ।
ले चलो मुझे वहाँ जहाँ
किरणे साथ रंगो में बिखरती हो ,
अपने यौवन की छटा निहार
इठला-इठला कर और निखरती हो ।
जहाँ मायूसी बेबसी का साया
हमसे कोसो दूर रहे ,
जहाँ सुनहरे भविष्य का रंग
हमारे इन आँखों पे चढ़े ।
जहाँ बचपन की मुस्कराहट अपने संग
एक नया रंग ले आए ,
जहाँ बुढ़ापे की समझ मिलकर उसमें
उसे और भी रंगीन बनाए ।
जहाँ यौवन की स्वतंत्रता , सुंदरता
उसमें और भी निखार लाए ,
जहाँ सब आपस में मिलकर
एक अनुपम दृश्य बनाए ।
जहाँ प्रेम और विश्वास की दृढ़ता
रिश्तों के धागों में मजबूती लाए ,
जहाँ ईष्या ,अहम् ,क्रोध की
हर समय आहुति दी जाए ।
जहाँ नीले आसमां के साये में
हरी धरती मंद-मंद मुस्कुराती हो ,
और अपने गोद में मनुज को
वो बड़े प्यार से सुलाती हो ।
जहाँ बारिश की बूंदे अपनी नमी से
एक नया रंग भरती हो ,
और अपने अस्तित्व को खोकर
धरती को सुहागन करती हो ।
ले चलो प्रिये मुझे वहाँ
जहाँ हकीकत सपनों से सुन्दर हो ,
जहाँ प्रेम के रंगो से रंगा
स्वर्ग सभी जनों के अंदर हो ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०४.०९.२०१७