अरे ! अभी तो धूप खिली थी
ना जाने बारिश कहाँ से हो गई ?
खुशियों की आहट अभी बस सुनी थी
ना जाने वापस कहा वो खो गई ?
नीले आसमान में सूरज ने
बस अभी अभी मुस्कुराया था ,
खुले गगन में पक्षियों ने
बस अभी अभी चहचहाया था।
ढूँढ रही है वो एक ठिकाना,
सर अपना छुपाने को,
ढूँढ रही हैं वो एक निवाला
अपने बच्चों को खिलाने को।
आस लगाए बैठी मन में
बारिश रुक जाए कुछ क्षणों में,
भूख से व्याकुल हैं बच्चे
तृप्ति मिल जाए कुछ कणों में ।
पेड़ के डाल पर बैठी
अपने घोंसलें को निहारती थी,
बारिश रुक जाए जल्दी
शायद ईश्वर से पुकारतीं थी।
अरे ! बारिश ने अपना कैसा
भयावक रूप है धर लिया,
नन्ही पक्षी के हृदय में
मृत्यु का भय है भर दिया ।
पंख पूरी तरह भींग गए
अब उड़ा भी न जाता है,
पल भर में उसका संसार
काल के मुख में समाता है।
थक हार कर उसने सब कुछ
ईश्वर पर छोड़ दिया,
पूरे घटनाक्रम में फिर
एक अचानक मोड़ लिया ।
बादल छंटने लगे आसमान से
सूरज वापस पुनः मुस्कुराया,
उस पक्षी का संसार पास
उसके वापस पुनः लौट आया।
मौसम का काम है बदलना
वो तो बदलते ही रहेंगे ,
आज इस रूप में तो कल
उस रूप में ढलते ही रहेंगे।
उन पर न कोई बस तुम्हारा
खुद को उनके अनुरूप ढाला जाए,
खुद को सशक्त बनाने का
दृढ़ संकल्प मन में पाला जाए।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
२३-०९-२०२२