एक तुम भी यहीं एक हम भी यहीं
पर समय ये अचानक कहाँ चल गया ,
दो कलियाँ अभी मधुबन में मुस्काई थी
उनका यौवन अचानक कहाँ ढल गया ?
एक वो दौर था बातें रूकती ना थी
आज बातें बातों में ही खो गई ,
इन आँखों से आँसू छलके ना थे
ये आँखे आँखों में ही रो गई ।
साथ देने का वादा तो आधा रहा
हम सफर हो के भी हमसफ़र अब नहीं ,
दूरियाँ थी मगर फिर भी हम पास थे
पास हो के भी अपनी खबर अब नहीं ।
मुद्दते हो गई खुलकर हँसते हुए
एक चेहरा चेहरे पर ओढ़े है हम ,
इस ज़माने के ढाँचे में ढल ना सके
टूट कर खुद से खुद को ही जोड़े है हम ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी ‘
०७.०१.२०२१