जीवन का श्रृंगार हूँ मैं
विकास का आधार हूँ मैं ,
एक अद्भुत मैं कहानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
लड़कपन की आस हूँ मैं
हर धड़कन की प्यास हूँ मैं ,
सामर्थ्य की मैं निशानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
बुढ़ापे की मुस्कान हूँ मैं
हर दिल की अरमान हूँ मैं ,
कल-चक्र की मैं रवानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
जिसे व्यर्थ तुम गँवाते हो
नशे के धुँए में उड़ाते हो ,
समझदारों की मैं नादानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
जीवन मंथन की अमृत हूँ मैं
स्वयं दिनकर की निमृत हूँ मैं ,
तेजस्विता की खुद में बयानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
जिसे तुम औरों पर लुटाते हो
भ्रमर बन हर पुष्प पर मंडराते हो ,
सब्र की मैं परेशानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
प्रत्यूषा की पहली किरण हूँ मैं
वन की मृगनयनी हिरण हूँ मैं ,
सौंदर्यता की खुद मैं ज़बानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
जो मदिरा की धार में बह जाती है ,
लक्ष्य को निहारकर रह जाती है ,
आलस्य में जकड़ी मैं सयानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
विश्व के मुकुट का ताज हूँ मैं
सुरमयी संगीत से सजा साज हूँ मैं ,
अद्भुत अलौकिक मैं रूहानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
तुम्हारे बल की अकड़ हूँ मैं
सपनो की हकीकत पर पकड़ हूँ मैं ,
रंग रूप की मैं अभिमानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
ये तुमपर है मुझे कैसे जीते हो
अमृत लेते हो या स्वयं विष पीते हो ,
ज्ञान से भरी फिर भी अज्ञानी हूँ
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
बुद्ध के ज्ञान की बानी हूँ ,
ईशा के प्रेम की निशानी हूँ ,
पैगम्बर के उसूलो की ज़बानी हूँ
राम के मर्यादा की कहानी हूँ ,
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ,
हाँ ,मैं तुम्हारी जवानी हूँ ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०८.०१.२०१६