दर्पण की गहराइयों में
अतीत की परछाइयों में ,
यादो की रुस्वाइयों में
मेरी इन तन्हाइयों में ।
बस तुम्हारा चेहरा नज़र आया
सिर्फ तुम्हे मैंने अपना पाया ,
संग तुम्हारा हमेशा खुशियां ही लाया
तुम्हारे सिवा कोई और ना
अब तक है मुझको भाया ।
याद है मुझे वो दिन
इज़हारे मोहब्बत किया था तुमने ,
सारी महफ़िल के सामने
इकरारे मोहब्बत किया था हमने ।
खुश थी बहुत मैं
तुम्हारे जैसा पति पाकर ,
भाग्य मेरे जगे थे
घर में तुम्हारे आकर ।
गर्व होता था मुझे सुन
देशभक्ति की तुम्हारी बातें ,
काँप जाती थी सुन
सरहद पर बितायी तुम्हारी रातें ।
देखती वर्दी में जब तुम्हे
आँखे मेरी भर जाती थी ,
चेहरे पर हँसी लिए मैं
गम चुपचाप सह जाती थी ।
पर पता ना था मुझे
तुम वापस ना आओगे ,
मेरी इन तन्हाइयों में बस
याद बनकर रह जाओगे ।
तुम्हारे बिना ये दिन
कुछ पहेली सी लगती है ,
तुम्हारे बिना ये रातें
कुछ अकेली सी लगती है ।
करोड़ो खर्च होते है यहाँ
आतंकवादी की खातिरदारी में ,
बेमौत मरते है लोग यहाँ
नेताओ की वफादारी में ।
शहीदों के फेहरिस्त में
एक नया नाम जुड़ गया ,
पर उस दिन से दिल मेरा
किसी कोने में सिकुड़ गया ।
भारत के लोगों की
यादाश्त बहुत कमज़ोर है ,
हर कोई यहाँ खुद
अपने नशे में सराबोर है ।
नीची रहती थी , जिन लोगों की नज़रे
अब वो मुझे घूरती है ,
ना जाने कैसी – कैसी बातें
इन कानो में घोलती है ।
कभी-कभी सोचती हूँ ,
क्या इनके लिए तुमने जान दिया ,
फिर यह ख्याल आता है
एक देशभक्त ने अपना काम किया ।
नाज़ था, है और रहेगा
मुझे तुम्हारी देशभक्ति पर ,
पर शर्म आती है मुझे
इस देश की भक्ति पर ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
२९.१२.२०११