लोरी सुनाऊँ

सींचा नौ माह लहू से
मोल मैं कैसे चुकाऊँ,
सो जा माँ मैं
तुझे अब लोरी सुनाऊँ |

जागती रही तेरी आँखे
पड़ा जब भी मैं बीमार ,
आ इन थकी आँखों को
मैं थोड़ा आराम पहुचाऊं ,
सो जा माँ मैं
तुझे अब लोरी सुनाऊँ |

खुद भूखा रहकर तूने
मुझे भरपेट खिलाया ,
आ तुझे अब मैं
अपने हाथों से खिलाऊँ,
सो जा माँ मैं
तुझे अब लोरी सुनाऊँ |

छिपाया गोद में तूने
डरकर जब भी जाता ,
आ तुझे अब मैं
अपने सीने से लगाऊँ,
सो जा माँ मैं
तुझे अब लोरी सुनाऊँ |

बहुत बेचैन रही तू
थोड़ा मैं चैन दिलाऊँ,
तेरे इन अधरों पर
अब मैं हँसी ले आऊँ,
सो जा माँ मैं
तुझे अब लोरी सुनाऊँ |

निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
१२.१०.२०१०

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