तुम अपने वक़्त को नहीं
स्वयं खुद को व्यर्थ करते हो ,
अपने हाथों अपना वर्तमान गँवा
भविष्य में भूत की आहें भरते हो ।
जरा सोचो ! क्या इस पल का
इससे बेहतर उपयोग नहीं हो सकता ,
जीवन रूपी बगियाँ में ये क्या
खुशियों का बीज नहीं बो सकता ।
इन हर गुजरते पलों का ध्येय
खुशियाँ नहीं तो और क्या है ,
रिश्तों की खुशबू से महके ये जीवन
बगियाँ नहीं तो और क्या है ।
जीवन कुछ ऐसे जियो कि
जीवन को जीना सीखा दो ,
गम के मरे प्यासे कंठ को
आनंद कि मदिरा पिला दो ।
इन पलों में झोंक दो सबकुछ अपना
कि ये पल ही बस तुम्हारे है ,
किसके आस में तुम हताश बैठे हो
जबकि स्वयं ईश्वर तुमसे आस लगाए है ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०१.०३.२०१७