मेरा भी मन करता है
मैं भी कुछ ऐसा लिखूँ,
कि जब जाऊँ इस धरती से
उनकी रौशनी में सूरज सा दिखूँ ।
पर ना ऐसे शब्द मेरे पास है
और ना शैली ही मेरी खास है ,
फिर भी कुछ अच्छा लिखूँगा मैं
दिल में इसी कि आस है ।
इसलिए अपने दिल की बातों को मैं
कागज पर लिखता जाता हूँ ,
दुनिया की खोज में खुद से ही मैं
और करीब मिलता जाता हूँ ।
जिस दिन ये दूरी मिट जाएगी
मेरी कलम कुछ नया रंग दिखाएगी ,
और मेरी वो अमर कृति स्वतः ही
इस दुनिया के सामने चली आएगी ।
तब तक अपने बातों को यूँही लिखता जाऊँगा मैं
कुछ ख़ुशी के, कुछ गंभीर गीत सुनाऊँगा मैं ,
और अगर कोई सुनना ना चाहे फिर भी
अकेले में ही गुनगुनाऊँगा मैं ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
२६.०८.२०१५