मेरी माँ

शब्दों से कैसे मैं करूँ बयां
दिल में जो मेरे है माँ ,
तुझको जो देखूं मैं इक दफा
फिर ही सुकून मिले है माँ …
मेरी माँ …

चेहरे की तेरी जो हँसी है
जन्नत है मेरी वो माँ ,
यूँही तू हँसती रहे सदा
मन्नत ये मेरी है माँ ।
तेरे ही हाथों को थाम कर के
अब तक मैं चलता रहा ,
तेरे ही आँचल के साये में
अब तक मैं पलता रहा ।
मेरी माँ ….

दिन ये बड़ा कुछ खास है
दुनिया में आई थी तुम ,
प्यार से अपने मेरे जहाँ को
सुन्दर बनाई हो तुम ।
होने से तेरे वजूद मेरा
तुझसे ही हूँ मैं तो माँ ,
तेरा हाथ रहे सर पर
इतनी सी चाहत है माँ
मेरी माँ ….

निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
२६.०३.२०१७

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