लाखो की भीड़ में
अपनी पहचान खोजा करता हूँ ,
जो सीधे दिल तक जाये
वो आवाज़ खोजा करता हूँ |
अपनी खोजबीन करते हुए
सड़क पर जा रहा था यूँही ,
एक सुन्दर चेहरा मिला
पलट कर देखा ज्यूंहि |
कदम अब आगे न बढ़ते थे
मानो हमसे ये कहते थे ,
रुक जा क्यों बढ़ा जा रहा है
ज़रा पीछे देख तो कौन आ रहा है |
जूते के फीते बांधने के
बहाने से मैं रुक गया ,
पर देख उनका सुन्दर रूप
सर अपने आप झुक गया |
नज़रे उठाकर जैसे मैंने
उनकी भोली नज़रो को देखा ,
समझ गया हमारा मिलना
था किस्मत का कोई लेखा |
ज़बान बंद थी , नज़रे उन्हें
बस देखे जा रही थी ,
सामने सड़क पर मगर
एक हौंडा सिटी चली आ रही थी |
हमें देखकर वो मुस्करा दिए ,
मानो दिल के सारे तार बजा दिए ,
चढ़ा इश्क़ का खुमार इतना
हॉर्न लगे मीठी तान जितना |
खींचा उन्होंने पास मुझे
कार से जान बचाई ,
मैं पगला बस देखता रहा
दिल की बात न बताई |
कहा उन्होंने मुझसे
ज़रा अपनी होश सम्भालो ,
अभी भी वक़्त है
अपनी आँखे तो बनालो |
कहा मैंने , नज़रे तो ठीक है
दिल को कैसे सम्भालूं ,
लेसिक तो ठीक है
हार्ट ट्रांसप्लांटेशन कैसे करालुं |
सुनकर भोला जवाब हमारा
उनके चेहरे पर हसीं आ गई ,
जिसका मुझे हमेशा इंतज़ार था
आज वो घडी आ गई |
फिर हमने सोचा बात को
थोड़ी और आगे बढ़ाई जाये ,
ज़रा सामने वाले को
दिल की बात बताई जाये |
मैंने कहा , देखा है जबसे तुम्हे
दिल तुमपर है आया ,
तुम्हारे सिवा कोई और मुझको
ना अब तक है भाया |
देखा उसने मुझको
ज़रा वो शरमाई ,
अपनी बात कहने से पहले
थोड़ा वो मुस्काई |
करती हूँ प्यार मैं भी
तुम्हे अपना है माना ,
तभी मेरे रूममेट ने कहा
चौबे उठ ! कॉलेज है जाना |
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
३०.०८.२०११