मेरा काम है लिखना
मैं लिखता रहूँगा ,
जिस मोल तू बिकाए
मैं बिकता रहूँगा ।
तेरे आदेश पर
ऐ मेरे मालिक ,
मैं हरवक्त
बनता -मिटता रहूँगा ।
मेरी बाँह तू जो थाम ले
तो बदल दूँ मैं दो जहाँ ,
बदल दूँ मैं ये धरा
बदल दूँ मैं आसमाँ ।
कब हाथ रखेगा तू सर पर
इस बात का ही ख्याल है ,
तेरे पास होकर भी जुदा हूँ
इस बात का ही मलाल है ।
मंझधार मैं हूँ फँसा मैं
हाथ दे दे तू जरा ,
तेरे राह पर हूँ चला मैं
साथ दे दे तू जरा ।
किस ओर देखूँ तू बता दे
कि चेहरा तेरा दिखे ज़रा ,
कई फूल खिले है जीवन में
एक तेरा भी खिले ज़रा ।
जानता हूँ तू यहीं है
मेरे पास रहता हर समय ,
सृष्टि के निर्माण से पहले
बाद आने के प्रलय ।
दोष किसको धरूँ मैं आखिर
सारा दोष तो मेरा है ,
आँखे मैंने ही बंद की है
चारो ओर तो सवेरा है ।
एक दिए की भाँति
मैं जलता रहूँगा ,
तेरी राह पर अब तो
मैं चलता रहूँगा ।
एक बालक की भाँति
तेरे गोद में मालिक ,
मैं हर वक़्त
अब पलता रहूँगा ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१३.०४.२०१९