माया हो तुम

जीवन की कड़ी धूप में
तरुवर की छाया हो तुम ,
जिससे ये जगत है बना
ईश्वर की माया हो तुम ।

मेरे इन अधरों पर
तेरे ममता की प्यास लगी ,
और किसको देखूँ मैं
मेरे आँखों में तू है बसी ।

कुछ दूरी है हममें
लेकिन दिल की दूरी नहीं ,
हरदम हम साथ रहें
ऐसा भी ज़रूरी नहीं ।

बस मेरे इस दिल की
इतनी सी ख्वाहिश हो ,
मन भींगे तन भींगे
तेरी ममता की बारिश हो ।

जो कुछ भी है मेरा
तुझसे ही आया है ,
जैसा भी हूँ माँ
तूने ही बनाया है ।

ये छोटी सी कविता मेरी
तेरी आँखों की ज्योति बने ,
बूंदो में बदल कर फिर
तेरे प्रेम की मोती बने ।

निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१५.०५.२०१६

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