माँ

जितना प्यार करती हो मुझसे
क्या कोई दूजा भी कर पाएगा,
सच में माँ के आगे भगवान भी
बस नतमस्तक रह जाएगा ।

रक्त का केवल सम्बन्ध नहीं
तेरी आत्मा से जुड़ा हूँ मैं ,
जो तुम तक पहुँचाए मुझे
हर उस राह पर मुड़ा हूँ मैं ।

तुम्हारे दृगों की आद्रता में
मुझे मेरा बचपन है दिखता,
अब भी मुझे सबसे ज्यादा सुकून
माँ तेरी गोद में ही मिलता ।

बहुत सोचा कि माँ कि तुलना
मैं किससे है कर सकूँ ,
माँ के जगह पर मैं सिर्फ
माँ को ही भर सकूँ ।

तुम्हारे ममता और स्नेह को
शब्दों में भाषित कर सकूँ ,
ईश्वर भी समर्थ नहीं फिर मैं
कैसे माँ को परिभाषित कर सकूँ ।

अतएव शब्दों से परे अपने
भावों से तुम्हें मिलता हूँ ,
ईश्वर कि जगह मैं माँ
सिर्फ तुम्हें ही बिठाता हूँ ।

निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०३.०७.२०१५

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