महान है शरीर मेरा
महान है जीवात्मा ,
महान हूँ मैं और
महान है परमात्मा ।
प्रचंड तेज में नहाया हुआ
महानता को समाया हुआ ,
अदम्य शक्ति का स्वरुप हूँ
मैं खुद उसका प्रतिरूप हूँ ।
ब्रह्म हूँ , रूद्र हूँ
और हूँ संरक्षक ,
ताण्डवी नृत्य करता
काल का हूँ भक्षक ।
अमर हूँ , अजन्मा हूँ
अनंत हूँ अविनाशी ,
शरीर रूपी देश में
हूँ मात्र एक प्रवासी ।
इस रूप को छोड़कर
कल नया रूप धरूँगा,
शरीर तो मिट जायेगा
पर मैं हमेशा रहूँगा
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
०८.१०.२०१२