मनवा काहे तू ना माने
अपनी ही करे मेरी ना सुने ,
मनवा काहे तू ना माने ?
क्यूँ मजबूर हूँ मैं तेरे हाथों से
क्यूँ घायल हूँ तेरे बातों से ,
मनवा अब तो तू सुन ले रे !
कोई बैर नहीं मेरा तेरा
तू हमसाया ही है मेरा ,
मनवा दर्द देता क्यूँ रे !
सुख के ही तू पीछे भागे
सुख क्या है ये भी ना जाने ,
मनवा इनता भोला क्यूँ रे !
दो पल का है ये खेल सभी
जो करना है कर ले तू अभी ,
मनवा बेबस बैठा क्यूँ रे !
जो भी होता एक कारण है
कर्मो से ही तो निवारण है ,
मनवा कर्म अब तू कर रे !
कल के ही बारे में सोचे
खुशियाँ तू कल में ही खोजे ,
मनवा आज ही सब कुछ रे !
तू साथी मेरे सपनों में
तू ही तो बस मेरे अपनों में ,
मनवा साथ दे तू अब रे !
ये युद्ध नहीं समझौता है
जीवन तेरा ही मुखौटा है ,
मनवा शक्ति दे तू अब रे !
महान हूँ मैं और महान है तू
समृद्धि की पहचान है तू
मनवा एक हो जा अब रे !
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०७.०३.२०१४