भूख की दर्पण – स्त्री के माध्यम

जिसे तुम ठुकरा देते हो बकवास समझकर
कईयों को वो मिलता है नसीब से ,
कितना बेबस कर देती है भूख किसी को
कभी जाकर तो देखो करीब से ।

भूख ऐसी अग्नि है जिसमें
इंसान का ज़मीर जल जाता है ,
सारे नियम कायदे जल जाते है
मन उसका रख बन रह जाता है ।

जब खुद दो दिन से भूखी माँ
अपने बच्चे को भूखा सुलाती है ,
तो इंसान तो क्या खुद शैतान की
आँखे गीली हो जाती है ।

भूख के मारे कंठ में
लोरियाँ दब कर रह जाती है ,
शब्दों का बस पकवान बना वो
बच्चो की क्षुधा मिटाती है ।

वो जानती है इस बात को
कि शब्दों से पेट भरता नहीं ,
और इस दुनिया में किसी को
मुफ्त में कुछ मिलता नहीं ।

पर आखिर करे तो क्या करे वो
माँ-बाप ने इस काबिल बनाया नहीं ,
और पति भी उसे ऐसा मिला जिसने
शराब से कभी पीछा छुड़ाया नहीं ।

नशे और जुए की लत में
उसका घरौंदा नीलाम हो गया ,
उसका बचा-खुचा जो सम्मान था
वो गालियों के नाम हो गया ।

इज़्ज़तदार घर की बेटी थी
शरीर के दाग कैसे दिखाती,
और अपने पति के खिलाफ
वो फिर आवाज़ कैसे उठाती ।

मन और शरीर जला था
पर लोगो के सामने मुस्कुराती थी ,
बाथरूम में गिरने के बहाने
शरीर के घाव छुपाती थी ।

हद तो तब हुई
जब घर की चीजों के साथ
उसकी इज़्ज़त का व्यापर हुआ ,
सब कुछ झेलने वाली उस अबला को
फिर वो झेलना नागवार हुआ ।

समाज की परवाह ना कर
उसने उस नरक को छोड़ दिया ,
अपने पाँव में पड़ी बेड़ियों को
खुद अपने हाथों उसने तोड़ दिया ।

मगर आखिर अब वो
जाए तो जाए कहाँ ,
कैसे पाए आखिर वो छत
अपना सर वो छुपाए जहाँ ।

तीन साल के बच्चे को लेकर
फिरती रही वो मारी -मारी ,
लेकिन रिश्तों के हर दरवाजे से
पाई गई वो खुदको ठुकराई ।

दो दिन के भूख ने फिर
उसका स्वाभिमान जला दिया ,
थक हर कर उसने खुदको
मंदिर के आगे खड़ा किया ।

जिन हाथों में अन्नपूर्णा थी बसती
आज भीख का कटोरा है उसमें ,
उसके वर्तमान की दशा दर्शाते
चाँद सिक्को का झरोखा है उसमें ।

मंदिर की घंटियों के साथ
लोगो के ताने वो सुनती ,
वहीं जूठे के ढेर में वो
अपने लिए कुछ खाने को चुनती ।

किसी तरह कुछ खाने मिल जाए
मात्र इस बात पर ही ध्यान रहता ,
भूख की उस प्रचंड अग्नि में
शरीर के साथ उसका मन भी जलता ।

नियति को आखिर एक दिन
तरस उसकी हालत पर आया ,
एक भली औरत से उसको
चंद इत्तेफाकों ने मिलवाया ।

उसके घर में काम कर वो
अपने बच्चो का पालन करती है ,
आज अपने मेहनत के दम पर
अपने दुःखों का निवारण करती है ।

अपनी बेटी को इस लायक बनाओ
कि कभी किसी की जरूरत ना पड़े ,
बेखौफ और आज़ाद विचार लेकर
राह के तमाम मुश्किलों से वो लड़े ।

निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०४.०३.२०१७

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