भक्ति

कभी एक दिया गरीब के
घर में जलाकर देखो ,
कभी एक नारियल भूखे के
मुख में खिलाकर देखो ,
कभी एक वस्त्र से नग्न के
तन को छिपाकर देखो ,
कभी एक प्यास के मारे को
दो घुट पिलाकर देखो ।

ईश्वर की अनुभूति का
सारा प्रश्न मिट जायेगा ,
अंतर्द्वंदों का सारा जमावड़ा
अपने आप पिट जायेगा ।

पूजन प्रतिमाओं का
सृजन कविताओं का ,
दान पुण्य लाखो का
अश्रु से भींगे आँखों का ,
चढ़ावा दरबारों में
पुष्प के अम्बारों में ,
दर्शन के कतारों में
और मंदिरो के द्वारे में ,
दूध की नदियाँ बहाना
सोने के मुकुट चढ़ाना ,
लाउडस्पीकर पर गाने बजाना
और भगवान के मंदिरे बनाना ।

इन सब पर विश्वास तुम्हारा
बहुत अच्छी बात है ,
किन्तु बताता हूँ तुम्हे
गीता में सच्ची बात है ,
वास है कण-कण में उसका
रास है क्षण- क्षण में उसका
सम्पूर्ण विश्व है उसका धाम
तुझमे मुझमे है श्रीराम ।

मंदिरो में उजियारा है
पर गरीब के घर अँधियारा है ,
भूख के व्याकुल है वो
प्यास से आकुल है वो,
सर छिपाने को छत्र नहीं
और शरीर पर वस्त्र सर्वत्र नहीं ।

उनकी कराहो में
पुकारता तुझे है वो ,
अश्रु से भींगे आँखों से
निहारता तुझे है वो ,
दुआओ के बोलो से
दुलारता तुझे है वो
और उनकी दशा दिखलाकर
धिक्कारता तुझे है वो ।

खोजते हो उसे तुम
मंदिरो में , गिरिजो में
मस्जिदों में , गुरुद्वारों में ,
वेदो के मंत्रो में
कुरान के आयतो में ,
पर्वतो में , वनो में
गुरुओ के चरणों में ,
धार्मिक क्रिया कलापो में
आरतियों के आलापों में ,
बाबाओ के उपायों में
अपने निज समुदायों में ।

दूर इतना ही है तुमसे
जितनी दूर तुम्हारी साँस,
सब पाखंडो को छोड़कर
बस रख एक उसमे विश्वास ,
पाना उसे आसान है
अज्ञान मिटाकर देख ले ,
बस बगल में खड़ा है
अंधकार मिटाकर देख ले ।

निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
१३.१०.२०१२

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nishantchoubey

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