जिस देश की खातिर
शहीद हरदम शहदा होते ,
उसी देश को लूटने नित
नए नेता पैदा होते ।
आज का परिवेश है
राम अवश्य धनुष उठाते ,
मगर जनक दुलारी से अब
रावण ही ब्याह रचाते ।
मेहनत करता है कोई
और फल लेता दूजा कोई ,
एक-दूसरे को ठगने में
यहाँ लगे है सब कोई ।
भगत, आजाद , बिस्मिल , बोस
अशफाक की आँखों में पानी है ,
जल रहा है देश फिर भी
सोई इसकी जवानी है ।
शहीदों की खून से
नेतागण खेले होली ,
दो कौड़ी की करनी इनकी
अरबो की मगर बोली ।
बलिदानो की पावन भूमि
स्वार्थ की पहचान बनी ,
ईमानदारी जैसे शब्दों से
भारत अब अनजान बनी ।
मात्र पत्थरो और चित्रों में
औरत अब आदर पाती,
असल में बेइन्सानो से वो
जूझती ही नज़र आती ।
हम से मैं पर आये लोग
इससे ही परेशानी है ,
सबके संग अपना हित हो
समझ की यही निशानी है ।
परधन है मिट्टी जैसा
और परनारी मात समान ,
इससे ही स्वर्ग बनेगा
मेरा ये भारत महान।
‘अज्ञानी’ कहता है तुमसे
एक बात का ध्यान रखना ,
अपने हितो से साथ ही तुम
देशहित का ज्ञान रखना ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०८.०६.२०१३