ना जाने क्यूँ कैसी है ये बेकरारी
ना जाने क्यूँ छाई है अब ये खुमारी
ना जाने क्यूँ….ना जाने क्यूँ….
ना जाने क्यूँ तेरी ही राहें आँखे तके
ना जाने क्यूँ तुझसे ही मिलने को मन ये करे
ना जाने क्यूँ….ना जाने क्यूँ….
जबसे मेरे आँखों के आगे हो आए
सपने ही सपने इनमे तुम हो सजाए ,
डूबा रहूं मैं तेरे ख़यालों में हरदम
तुझसे ही मिलने की आस लगाया मैं हरपल ।
ना जाने क्यूँ सपनों का कैसा है ये समां
ना जाने क्यूँ तेरी ही राहों में दिल ये रमा ,
ना जाने क्यूँ….ना जाने क्यूँ…
ना जाने क्यूँ पल भर की दूरी सही जाए ना
ना जाने क्यूँ तेरे बिना कुछ नज़र आए ना
ना जाने क्यूँ…ना जाने क्यूँ…
जीवन में मेरे आकर इसे हो बनाए
खुशबु से अपने ही तुम इसको महकाए ,
प्यार ही प्यार राहे अपने जीवन में
और क्या करूँगा तुझे अर्पण मैं ।
ना जाने क्यूँ तेरी ही खुशियाँ दिल ये मांगे
ना जाने क्यूँ उनके ही पीछे मन ये भागे
ना जाने क्यूँ…ना जाने क्यूँ…
ना जाने क्यूँ खुद से मैं ज्यादा तुझे अब करूँ
ना जाने क्यूँ दिल के मंदिर में तुझको रखूं ।
ना जाने क्यूँ…ना जाने क्यूँ….
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
२३.०९.२०१७