अभी चखा है चाशनी जीवन का
मदिरा को दूर रहने दो ,
मुझे यौवन के उमंगो के
नशे में चूर रहने दो ।
नशा अगर करना ही है तो
मैं जिंदगी का नशा करूँगा,
अपने हर इक साँस से अब
क़र्ज़ उसका अदा करूँगा ।
सिगरेट के धुँए में जलकर
क्या खाक जवानी जलानी है ,
अरे इन्ही कंधो को तो फिर
एक नई इतिहास बनानी है ।
जीवन को सपने में जीना
या सपने को जीवन में जीना ,
मैं ही निर्धारित करूँगा कि
आखिर मुझे कैसे है जीना ।
अभी आँखों के सपनों को
हकीकत में बदलने दो ,
अपने कामो से जिन्दा मुझे
इस दुनिया में रहने दो ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०९.०७.२०१६