तेरी बातें याद आए मुझको
उनको मैं कैसे भुलाऊँ,
तेरा चेहरा दिल में बसा है
नज़रो से क्या ढूँढ पाऊँ ।
जब से दूर मुझसे तू हो गई
आँखों की वो हँसी खो गई ।
पास आने को दिल ये पुकारे
जाऊँ तो मैं कहाँ ?
उस दुनिया से माँ तुझको
कैसे मैं लाऊँ यहाँ ?
साथ जब तक थी तू मेरा
बचपना भी साथ था ,
मेरे इन हाथों में माँ
तेरा भी तो हाथ था ।
तेरे हाथों को फिर से थामूँ
बस इतनी चाहत है ,
तेरी गोदी में सर रखकर माँ
ही मुझको राहत है ।
थोड़ी कमी थी इस जन्म में
अगले में पूरा करूँगा ,
काश मुझको मौका मिले माँ
बस तुझको ही वरूँगा ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०३.०८.२०१६