बहुत सोचा क्या लिखुँ
कि तुमपर कविता बन जाए ,
जिसमे मेरे भाव पिघलकर
शब्दों की सरिता बन जाए ।
पिछले जन्म का पुण्य है
तुम मेरी माँ बनी ,
जीवन की इस ठण्ड में
प्रेम की ऊष्मा बनी ।
मेरे जीवन में तुमने ही
ज्ञान का प्रकाश भरा ,
मेरी इन मुठ्ठियों में
तुमने सारा आकाश भरा ।
जीवन -रुपी पौधे को
रक्त से है सींचा तुमने ,
मेरी सारी तकलीफों को
अपने पास है खींचा तुमने ।
अपनी बातों से हमेशा
तुमने मुझमे विश्वास भरा ,
मेरे इस शरीर में
तुमने ही तो श्वास भरा ।
जब तुम हँसती हो तो ये
दुनिया सुन्दर लगती है ,
इन होठों पर मायूसी
मुझे कभी ना जँचती है ।
आँखों में तेरे मैंने
हमेशा प्यार भरा पाया ,
हाथों को तेरे मैंने
सोने से भी खरा पाया ।
बातों में हमेशा तेरी
मेरी फ़िक्र झलकती है ,
तेरे आशीर्वाद से ही माँ
मेरी ज़िन्दगी सँवरती है ।
जन्मदिन , मदर्स डे
मुझे कभी ना याद रहा ,
” जन्मदिन मुबारक हो “
मैंने तुमसे कभी ना कहा ।
आज जन्मदिन है तुम्हारा
पर मैं तुमसे दूर हूँ ,
मिलने को जी करता है
पर हालत से मजबूर हो ।
खुश रहे तू हमेशा
बस यहीं मैं चाहता हूँ ,
हमेशा हँसता देखूँ तुमको
बस यहीं मैं मांगता हूँ ।
अपनी सारी तकलीफों को
राम को तू सौंप से ,
जीवन में खुशियों के बीज
अपने हांथों तू रोप दे ।
जन्मदिन मुबारक हो
हमेशा तुम मुस्कुराते रहो ,
प्यार से मेरी ये दुनिया
हमेशा तुम सजाते रहो ।
तोहफे के रूप में
प्रेम की सरिता देता हूँ ,
अपनी कमी भरने के लिए
अपनी यह कविता देता हूँ ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
२२.०३.२०१२