तुझको पाने की सारी कोशिशे है
तुझसे मिलने की हर समय ख्वाहिशें है ,
मुझमें ही तू मगर है फिर भी दूरी तुझसे
खुद से ही खुद को पाने की मन्नते है ।
पास नदियाँ है फिर भी प्यासा हूँ मैं
सारी दुनिया के लिए इक तमाशा हूँ मैं ,
मगर इतनी सी उम्मीद मेरे दिल में बसी
कहीं भी जाऊँ, दूर तुझसे ज़रा सा हूँ मैं ।
हर इक राह पर मुड़ा हूँ जो तुझ तक जाए
ऐसी ना शाम गुजरी जब याद तू ना आए ,
अब तो इस दिल की चाहत है यही
मैं तुझमे तू मुझमे अब बस समा जाए ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
२८.०४.२०१६