गम के बेबस गान नहीं मैं
ख़ुशी के जोशीले गीत सुनाता हूँ ,
हाथों की रेखाएँ मेरी नहीं
मैं खुद अपना भाग्य बनाता हूँ ।
परिश्रम की चाक पर
विचारो की मिट्टी से ,
विश्वास की धरती पर
हिम्मत की शक्ति से ,
अपने चरित्र का पात्र मैं बनाता हूँ
बेबसी नहीं सामर्थ्य के गीत मैं सुनाता हूँ ।
व्यक्तित्व ही बल है मेरा
प्रतिभा ही मेरी पूँजी ,
सत्साहित्य ही मित्र है मेरे
सद्विचार ही मेरी कुंजी ।
महाप्रलय की घोषणा नहीं
सतयुग का विश्वास मैं दिलाता हूँ ,
कायरो का भाग्यवाद नहीं
गीता का कर्मयोग मैं सुनाता हूँ ।
अकूत क्षमताओं से भरा हूँ मैं
ईश्वर के हाथों खुद गढ़ा हूँ मैं ,
द्वेष नहीं प्रेम ही
मेरी मात्र शक्ति है ,
आत्मसंयम और आत्मशोधन ही
मेरी ईश्वर भक्ति है ।
ईष्या की कटीली झाड़ियाँ नहीं
प्रेम के पुष्प मैं उगाता हूँ ,
नफरत का सम्भाषण नहीं
सौहाद्र के बोल मैं सुनाता हूँ ।
मिट्टी से ही बना है सबकुछ
मिट्टी में ही मिल जाएगा,
मरीचिका के पीछे भाग
इंसान क्या कुछ पाएगा ।
सत्य की खोज को ही
अपना धर्म मैं बताता हूँ ,
अपने शब्दों की चिंगारी से
बुझे दीपक मैं जलाता हूँ ।
अन्धकार के दोष नहीं
प्रकाश के गुण मैं गिनाता हूँ ,
मुर्दो में भी जान फूँक दे
ऐस गीत मैं सुनाता हूँ ।
अपने हाथों ही अपना
भाग्य मैं बनाता हूँ ,
ग़मगीन नहीं ख़ुशी के
गीत मैं सुनाता हूँ ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
२७.०३.२०१३