खुद से खुद को जान अब तू ,
अपने को पहचान अब तू ।
आँखें मूँदे क्यूँ सोता है ,
वक़्त को तू यूँही खोता है ।
पल भर में कब क्या हो जाए ,
जाने कहाँ कब तू सो जाए ।
फिर सारे सपने धरे रहेंगे ,
उदास मन से तुझसे कहेंगे ।
जो भी करना है आज कर ले ,
मौत से पहले तू ना मर रे ।
कामों को तू टाला करता ,
क्या तू मौत को टाल सकता ।
अपना जीवन आप सँवारो ,
आग में तपकर खुद को निखारो ।
तुम क्या हो इसको तुम जानो ,
ज्ञान ,कर्म , भक्ति को मानो ।
गीता में बसा वो ज्ञान बनो तुम ,
रामायण का मान बनो तुम ।
वीरो को शक्ति बनो तुम ,
भक्तो की भक्ति बनो तुम ।
सहारा ना ले अब स्वयं बनो तुम ,
अहम् मिटाकर ब्रह्म बनो तुम ।
निज रूप को प्राप्त करो अब ,
अब ना करोगे को करोगे कब ?
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
२२.०४.२०१४