तुम्हें खुदको संभालना पड़ेगा
तुम्हें खुदको सँवारना पड़ेगा ,
तुम खुद अपने रचयिता हो
तुम्हें खुदको उभारना पड़ेगा ।
व्यर्थ है औरों से आस
कभी ना बुझे ऐसी प्यास ,
गर खुद से अपना जीवन बनाओगे
तभी वो आएगा तुझे रास ।
समय के इस तेज धार में
उसके किसी अनदेखे वार में ,
ढूंढ तुम्हें निकालना ही होगा
अपनी जीत खुद की हार में ।
परिश्रम का कोई विकल्प नहीं
आयु तुम्हारी कोई अल्प नहीं ,
गर पूरा ना कर पाओ तो
फिर वो कोई संकल्प नहीं ।
फिर क्यूँ माथे को झुकाए
जमीन पर आँखों को गड़ाए ,
भीख में मांगते हो जीवन
फटी चादर अपनी फैलाए ।
भीख नहीं अपना हक़ लेना होगा
जीवन को अपना पसीना देना होगा ,
फिर किस्मत को भी लिखने से पहले
उसे तुम्हारी अनुमति लेना होगा ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०४.०७.२०१६