इन गुजरते हुए पलों में
सारा जीवन गुजर जाता है ,
मगर कल की आस में मनुष्य
अपना सारा जीवन गँवाता है ।
हीरों को लुटाकर वो
कौड़ियों का दाम पाता है ,
फिर भी जगत में सबसे
खुदको बुद्धिमान कहलवाता है ।
इन सारी बातों को
जानते है यहाँ सभी ,
मगर समय की महत्ता पर
ध्यान देते कभी-कभी ।
बीते समय की अग्नि में
आज उसका जल जाता है ,
आज के राख़ को मल
इंसान बड़ा पछताता है ।
सोचता है , काश उस समय
ऐसा मैंने किया होता ,
समय को यूँ व्यर्थ न गँवा
उनको मैं जिया होता ।
लेकिन इंसान हर बार वहीं
गलती को दोहराता है ,
भूत और भविष्य में पिसकर
अपना वर्तमान गँवाता है ।
सोचो! इन क्षणों के अलावे
क्या तुम्हारे पास है ?
सच मायने में हर एक क्षण
अपने में कुछ खास है ।
इन्ही क्षणों की शृंखला से
जीवन की ये कविता है ,
इन्ही क्षणों की बूंदो से
जीवन की ये सरिता है ।
कुछ क्षणों की प्यास में
बाकि दूसरों को व्यर्थ ना करो ,
समान आदर करो उनका
हर एक क्षण में अर्थ भरो ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१८.०७.२०१६