हमारी थी हमारी है कोच्ची रिफाइनरी
उम्मीद के झरोखों से हमने जिसे देखी ,
तिनका तिनका जोड़ा है
तब बना है ये आशियां
अपने कदमों से हमने है
तय किये ये दो जहाँ ।
पचास वर्षो का है अनुभव फिर भी जोश नया है
अपनी मेहनत से हमने इतिहास नया लिखा है ,
नई है उम्मीदें हमसे ये हमें पता है
हिम्मत और हौसले से सीना ये भरा है ।
ये जो सफर चला था कहाँ शुरू हुआ था
कहाँ पे ये आ गया ,
कारवां जो अपना निकल पड़ा था
मंजिल पा गया ,
अपनी तकदीर को हमने अपने हाथों लिखा
चीर कर उस अँधेरे को सूरज ये दिखा ।
कुछ कर गुज़रने का ज़ज़्बा हर सीने में बसा है
आंसमा के ऊपर इन कदमों के अब निशां है ,
नई मंजिले है अब तो ये सफर नया है
उनको पाने के लिए हर कदम बढ़ चला है ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१५.०९.२०१६