ऐ दिल मेरे, क्यूँ दुखी है
तेरा गम ही तेरी ख़ुशी है ,
सिक्के के दो पहलू जैसे
गम और ख़ुशी है ऐसे ,
एक कभी ना आता अकेला
संग चलता दोनों का मेला ।
फिर दिल मेरे क्यूँ डरता है
चुप- चुप आहें क्यूँ भरता है ,
ये काली अंधियारी रातें
पल-पल करती कल की बातें ,
नया सवेरा फिर आएगा
सूरज नभ में फिर छाएगा,
मेघ बरस कर अपने जल से
तेरे सूखे अधरों पे छलके।
तेरा प्यास बुझाएँगे
मुझको गले से लगाएँगे,
ये वीरान हवाएँ भी
तुझको गीत सुनाएगी ,
भागता क्यूँ गम से अपने
इसमें पलते खुशियों के सपने ,
तेरा गम तुझको बताता
तेरी कमियाँ तुझको गिनाता ।
दूर करके अपनी कमियाँ
मिलती तुझको तेरी खुशियाँ,
गम को अपने पास बुलाले
मुश्किलों को गले से लगाले,
मुश्किलें जब भी आती है
तुझको हिम्मत दे जाती है ,
अपनी सोच जरा बदल ले
जलती राहों पर तू चल रे ।
फिर तेरी खुशियों का पौधा
गम के बीज से निकलेगा ,
अपने पसीने से सींच उसको
तभी देगा फल वो तुझको ,
मेहनत के मीठे फल को
अपने आने वाले कल को ,
अपने हाथों ही तू बनाता
फिर औरो पर दोष लगाता ।
ऐ दिल अब नादान मत बन
खुद से तू अनजान मत बन ,
जरा समझ से अपनी शक्ति
कर परिश्रम की तू भक्ति ,
सुख-दुःख तो है आती जाती
अपनी माया से है भरमाती ,
ऊपर उठाले अपने को इनसे
फिर पायेगा सच्चाई इनमें ।
दोनों एक है एक रहेंगे
रूप बदलकर तुझसे कहेंगे ,
हर लम्हा जी ले अपना
जीवन अमृत पी ले अपना ,
फिर कहाँ इसको पायेगा
हाथ मलता पछतायेगा ,
ये जीवन सोने से खरा है
प्यार ही प्यार भरा है ।
ऐ दिल मेरे प्यार कर तू
खुद पर अब अधिकार कर तू ,
हर लम्हा बेहद हसीं है
स्वर्ग अगर है तो यहीं है ,
स्वर्ग तेरा बस में तेरे
मान जा ऐ दिल मेरे ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१८.०९.२०१३