ई जिंदगी के का मतलब बा
जब आपने खून बनल दुश्मन बा ।
जेकरा के जनम देनी हतना दरद सह के ,
लालन-पालन कइनी मर मर के ,
उहे हमसे कुछ बोलत ना बा ।
जेकरा के आपन लोरी से सुतवनी,
गोदिया में धरकर हथवा से खिलवनी,
उहे हमका अब ताकत ना बा ।
मर-मर के कबतक जीअब इहे सोच के
मनवा में आपन ज्वाला भर के क्रोध के ,
चल देनी हम सब कुछ छोड़ के
ओकरे बंधन से मुँह को मोड़ के ,
ओकरा से मोह फिर भी छुटत ना बा ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
३०.०१.२०१६