इच्छा

बहुत भटका हूँ मैं
अब तो कुछ राह दिखाओ ,
नैया भंवर में फंसी मेरी
राम तुम्हीं अब पार लगाओ |

बहुत अवगुण है मुझमे
काफी गलतियाँ मैंने की ,
दीन-दुखियों गरीबो की
कभी सुधि ना मैंने ली |

रोज़ नए सपने देखता
पूरा ना कर पाता हूँ ,
हर रात सोने से पहले
एक ही सवाल दोहराता हूँ |

इस अनमोल जीवन का
क्या मोल तू चुकता है ,
बेमतलब की चीज़ो पर
अपना समय गँवाता है |

कुछ सदबुद्धि तो इस
जड़बुद्धि में भर दो ,
राम नाम ही निकले मुख से
ऐसा कुछ उपाय कर दो |

बस राम नाम का अमृत
कानो में मेरे जाये ,
देखूं राम को सभी में
गर भाग्य मेरे जग जाये |

राम नाम को पीने से
प्यास ना बुझने पाती है ,
उसमे डूब जाने की इच्छा
मन में बढ़ती जाती है |

जितना सुनता राम का नाम
और सुनने को मन करता ,
पर अब भी कुछ दोष है
ह्रदय में अपनी जो मैं धरता |

उन दोषो से मुझे
मुक्त करो ओ अन्तर्यामी
अविचल भक्ति रहे मुझमे
ऐसी कृपा करो स्वामी |

तुम्हारा प्यार मिले मुझे
बस यही चाहत है ,
तुम्हारे दर्शन से ही अब
आँखों को राहत है |

नित नए सपने देखूँ
और पूरा उसे कर पाऊँ,
राम अपना ध्यान बस
तुम्हारे चरणों पर लगाऊँ |

किया जिसने भी ध्यान तुम्हारा
तारा उसे बहाने से ,
राम अब तो आ जाओ
इस दास के बुलाने से |

निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
१९.०१.२०११

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