इक गीत लिखने बानी मई
तोहरा खातिर ,
तू हे तो जनम देलूं
हमरा आखिर ।
दिलवा में प्यार भरकर
जब तू मुसकालूँ,
धीरे-धीरे आपन
अँखियाँ झुकालूँ ,
सब कुछ पा जानी हम
तोहरे दीदार में ।
गोदवा में आपन जब
हमका सुतालूं,
हथवा से धीरे-धीरे
जब तू सहलालूँ,
सब कुछ पा जानी हम
तोहरे इस प्यार में ।
जब भी हम बेटा बनब
माँ तू ही बनिह ,
आपन प्यार से फिर
हमरा के गढ़िह ,
सब कुछ पा जानी हम
तोहरे स्वीकार में ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१२.०१.२०१६