आपबीती या कहानी

चाहे इसे आपबीती कहो
या कहो मनघडंत कहानी ,
जो कुछ भी तुम समझो
पर सुनो मेरी ज़बानी ।

बात है एक शाम की
उस शाम में कुछ बात थी ,
उस सड़क की भीड़ में
बस बुलेट ही मेरे साथ थी ।

रायबरेली के स्कूल से
लौट कर गया था मैं ,
चालीस किताबो के पन्नो को
घोट कर गया था मैं ।

टीचरों के कहा कि
करो गेट कि तैयारी,
पर मैं कर रहा था
अपनी बुलेट की सवारी ।

पचास की स्पीड थी
शान से बैठा था मैं ,
अपने इस सीने को
तान के बैठा था मैं ।

अचानक एक खूबसूरत बला
देखा अपने रूट में ,
गुलाबी रंग के दुप्पटे में
और सफ़ेद रंग के सूट में ।

आँखों पर विश्वास ना हुआ
जब मांगी मुझसे लिफ्ट ,
मैंने कहा हे भगवान !
थैंक यू फॉर द गिफ्ट ।

सुनकर कहाँ जाना है
मेरी खुमारी हुई चूर ,
दोस्तों उसका घर था
करीब बीस किलोमीटर दूर ।

तब दिमाग ने मुझसे कहा
तू बोल कुछ ना पायेगा ,
खून से कीमती पेट्रोल को
बस हवा में उड़ायेगा ।

दिल की फीलिंग्स को
दिमाग तो जानता नहीं ,
और दिमाग की कैलकुलेशन को
दिल है की मानता नहीं ।

दिल और दिमाग में
मेरे हो रही थी जंग,
आखिर दिल ही जीता इसमें
बिकॉज़ आई ऍम सो यंग ।

धड़कने तेज़ थी और
जबान मेरी बंद थी ,
३५० सी सी की गाड़ी की
गति भी थोड़ी मंद थी ।

दस किलोमीटर बीत गए
जब मैं कुछ भी ना बोला,
फिर उसने धीरे से
अपने मुँह को खोला ।

पूछा उसने नाम हमारा
और पूछा हमारा काम ,
RGIPT में पढता हूँ
निशांत है मेरा नाम ।

ये RGPIT क्या चीज़ है
और ये किस जगह है ,
और ये तो बताओ उसमे
एडमिशन किस तरह है ।

RGPIT नहीं RGIPT
नाम है इसका ,
IIT JEE से बच्चे उठाना
बस काम है इसका ।

राजीव गाँधी का सपना था
और PSUs का साथ ,
और इसके ऊपर है
मिनिस्ट्री ऑफ़ पेट्रोलियम का हाथ ।

प्लेसमेंट कही ना पूछ ले
तब दिमाग में आया ,
मैंने कहा, कुछ तुम भी कहो
मैंने तुम्हे इतना बताया ।

दिल्ली में पढ़ती थी
कोई फैशन का कोर्स था ,
और वहाँ भी पहुँचने में
उसके अंकल का सोर्स था ।

इसी तरह बातों ही बातों में
उसका घर भी आ गया ,
सूरज की लालिमा में उसे देख
कुछ नशा सा छा गया ।

उसने थैंक्स बोला मुझे , मैंने कहा
ये तो मेरा फ़र्ज़ था ,
तुम्हे घर छोड़ने में
भला मुझे क्या हर्ज़ था ।

सोचा घर जाकर उसे
फेसबुक पर ढूँढ़ूँगा,
बात बन जाएगी मेरी
गर ढंग से बोलूँगा ।

पेट्रोल है अस्सी के पार
और माइलेज है इसकी बीस ,
और दोस्तों मैं दूर था
घर से किलोमीटर तीस ।

पेट्रोल पंप गया मैं
जेब में अपनी हाथ डाली ,
दोस्तों मेरा जेब था
पूरी तरह से खाली ।

वॉलेट गायब थी , पर्ची मिली
लिखा था उसमे
थिस इस माय गिफ्ट
बाई द वे
थैंक्स फॉर द लिफ्ट ।

निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
१९.०६.२०१२

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