खेलते थे गोद में कभी
आज अंतिम साँसे गिन रहे है ,
अपने इस असहाय माँ को
बड़ा भारी दुःख दे रहे है |
राम रहीम को पूज कर
पाया था मैंने जिसे ,
नौ माह तक रक्त से
सींचा था मैंने जिसे |
नाज़ो से पाला था जिसे
सीने से लगाया था जिसे ,
हर गम से बचाया था जिसे
खुद खुदा ही माना था जिसे |
बच्चे से किशोर , किशोर से
जवान होते देखा ,
अपने पहले सपने को
साकार होते देखा |
चला था घर से आज
आशीर्वाद लेकर मेरा ,
नौकरी के पहले दिन को
गया था लाल मेरा |
खुश थी बहुत आज
मन्नत हुई मेरी पूरी ,
आज जाकर बुझी प्यास
बरसो से थी जो अधूरी |
हाय ! नियति को मेरा
इतना सा सुख ना भाया ,
अकस्मात् ही गिर पड़ा मुझपे
वज्रपात का विकट साया |
मेरा लाल , मेरे जिगर का टुकड़ा
आज खून से लथपथ पड़ा है ,
उसे ले जाने को यम
आज मेरे सर पर खड़ा है |
इस माँ की विरह वेदना
आज यहाँ कौन सुनेगा ,
उन पापियों को भीड़ से
आज यहाँ कौन चुनेगा |
लोग कहते है यहाँ
बम फूटा और लोग मरे ,
पर उन घावों को
है कौन यहाँ जो भरे |
बम फूटना अब
आम बात हो गयी ,
भारत की जवानी
ना जाने कहाँ सो गयी |
अकेला नहीं मरता कोई यहाँ
कई जिंदगियाँ साथ मरती है ,
पर उनकी परवाह क्या
सरकारे यहाँ करती है ?
बेगुनाहो की चिता पर
राजनीति की रोटियाँ पकती है ,
आज संवेदनहीन जनता बस
चुपचाप ही देखा करती है |
हाय ! इस ज़िन्दगी को
अब मैं जियूँ कैसे ?
अपने लाल के चीथड़ों को
अब मैं सीयूं कैसे ?
या खुदा ! हे राम !
अब तू ही मुझको बतादे ,
लौटा दे मेरा लाल या
मुझको ही पास बुलाले |
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
०८.०९.२०११