कुछ करना अभी बाकी है

साँसो की गर्म हवा
आज भी कहती है मुझसे
कुछ करना अभी बाकी है ।

अभी तक चला हूँ मैं
दौड़ना अभी बाकी है ,
आलस्य के इस पहाड़ को
तोड़ना अभी बाकी है ।

अपने हाथों की लकीरो को
बदलना अभी बाकी है,
परिश्रम की जलती राहों पर
टहलना अभी बाकी है।

अपने पसीने से नया इतिहास
गढ़ना अभी बाकी है,
सफलता के सर्वोच्च शिखर पर
चढ़ना अभी बाकी है ।

अपने आप को फौलाद में
ढालना अभी बाकी है,
भीष्म जैसा दृढ़ निश्चय
पालना अभी बाकी है ।

अपने बाजुओं से नयी राहें
बनाना अभी बाकी है,
अपने अंदर के देवत्व को
जगाना अभी बाकी है ।

पल-पल बदलते इस पल को
जीना अभी बाकी है,
दो घुँट जिंदगी का ढंग से
पीना अभी बाकी है ।

अपने चरित्र की उज्ज्वलता को
निखारना अभी बाकी है,
अपने हाथों से खुद को
संवारना अभी बाकी है।

स्वयं को स्वयं नियंत्रित
करना अभी बाकी है,
श्रद्धा रूपी पुष्प समर्पित
करना अभी बाकी है।

मातृभूमि के ऋण को
उतारना अभी बाकी है,
दीन-दुखियों को प्रेम से
दुलारना अभी बाकी है ।

अपने आपको पूरी तरह
जानना अभी बाकी है,
राम आप सर्वत्र हो
मानना अभी बाकी है।

अपने मानसिक दोषो को
मिटाना अभी बाकी है,
क्या कर सकता हूँ मैं
दिखाना अभी बाकी है ।

जीवन रुपी यज्ञ में
अहम् की आहूति दे
ब्रह्म बनना अभी बाकी है,
अंतरात्मा की यही पुकार है
कुछ करना अभी बाकी है
कुछ करना अभी बाकी है ।

निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
१६.०७.२०१३

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nishantchoubey

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