अकेला ही तू आया था
ज़िन्दगी की राहों में ,
अकेला ही तू जाएगा
मौत की पनाहों में ।
अकेले ही अब बढ़ना है
जीवन की राहों में ,
अकेले ही अब चढ़ना है
पर्वतों की छाँव में ।
कोई जब पुकारे ना
प्यार से दुलारे ना ,
बना के खुद को ही तू मीत
गाए जा ख़ुशी के गीत ।
किसी की चाह क्यूँ रखे
किसी की राह क्यूँ तके,
जला कर खुद से दीप तू
पथ को कर प्रदीप तू ।
ये चांदनी जो रात है
करती तुझसे बात है ,
तू छत के पीछे क्यूँ पड़ा
जब आकाश पूरा है खड़ा ।
तुम्हारे भीतर जो बसा
संसार उससे है रचा ,
संसार को समाए तू
खुद को ही भुलाए तू ।
तू सर्वशक्तिमान है
स्वरुप ही महान है ,
कुछ ऐसा कर के दिखा
कि मुस्कुरा दे वो ज़रा ।
कर्म ही तेरे तो
तेरी पहचान है ,
समय के बढ़ते चक्र पर
तू छोड़ता निशान है ।
अकेला ही तू वो कर
हज़ार जो ना कर सके ,
इतनी खुशियां बाँट तू
हज़ार भी ना भर सके ।
अकेला तू यहाँ नहीं
सबमें तू समाया है ,
माया के इंद्रजाल ने
मन को भरमाया है ।
तोड़ कर इस पिंजड़े को
बाहर आ के साँस ले ,
जीवन कुछ ऐसे जी कि
जीवन भी आस ले ।
जीवन के संग्राम में
तू युद्ध ऐसे करे ,
कि मौत भी तेरी ओर
आने से अब डरे ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०४.०४.२०१४